Monday, April 19, 2021

मेरा परिवार मेरी जिम्मेदारी

 नमस्कार पाठको,


कई दिनों से विचारो का मंथन मन में हो रहा है पर आसपास फैले भय का माहौल देख कर मन इतना अशांत है की कुछ सूझता ही नहीं और जब खुद के मन में  बेचैनी हो तो बड़ा मुश्किल हो जाता है स्थिर बैठ का अपने विचारो को लिख पाना। हालांकि ख़याली घोड़ो को दौड़ने की कुछ खास कोशिश मत कीजिये क्युकी कारण बहुत सी सामान्य और जाना माना है क्युकी इसी कारण ने विश्व को वर्ष २०२० मे घुटनो पर ला दिया था पर दिल ने आस न छोड़ी  और लोग ऐसा मनाने लगे थे की कैसे भी साल ख़तम हो और पनौती हटे ताकि साल ख़तम समस्या ख़तम लेकिन गुरु इतना बड़ा भय इतनी जल्दी कैसे अपना नाम मिट जान दे और वो भी ऐसे देश में जहा की शादिया भी हफ्तों उत्सव का माहौल बनाती है। हमारे यहाँ तो अतिथि भी आते है तो २-४ दिन सेवा सत्कार कराते है और फिर ये तो कोरोना है जो की दूसरे देश से इतना वीजा पासपोर्ट का झमेला निपटा कर आया है तो ये ऐसे कैसे चुप चाप निकल ले।

तो भाई बात कुछ ऐसे बढ़ी की हमको क्या सारी दुनिया को लगा था की वर्ष २०२१ आएगा और नयी खुशहाली लाएगा और फिर सब सामान्य हो जायेगा जैसे कि मोदीजी विदेशो के दौरे कर पाएंगे, दिल्ली के स्वघोषित  बादशाह फिर सड़को पर इंक और तमाचों से नवाजे जायेंगे और खानदानी पप्पू अपने अनाप शनाप बयानों से जनता जनार्दन को खुश कर विरोधी दलों का चुनावी प्रचार भी स्वयं करेगा लेकिन फिर बात वही हुई की "दिल के अरमान आंसुओ में रह गए"

फिल्म अंदाज अपना अपना में गोगा कहता है की आया हु तो लूट के जाऊंगा ठीक वैसे ही कोरोना कहता है की सब नोच घसोट के जाऊंगा वैसे भी इतना दूर से आया है तो फिर धूम तो मचनी ही थी और वैसे मच भी रही है बस फर्क सिर्फ इतना है कि इस धूम में ढोल-नगाड़ो का शोर नहीं है बल्कि एम्बुलेंस के सायरनों की गूँज है और ऑक्सीजन के अभाव में तड़पता मरीजों की चीख पुकार है जिसको देख सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है और मनस्थिति का तो पूछिए ही मत साहब की क्या हाल है। अब तो न भजन में मन लगता है न भोजन में क्युकी अबकी बार की जो मनस्थिति है वो पूरी तरह हिली हुई है। वर्ष २०१९ तक सारी दुनिया को चुटकी में ख़तम कर देने की क्षमता रखने वाले देश अब दूसरे देशो की वैक्सीन सप्लाई की ताक में घरो में भीगी बिल्ली की भांति दुबककर बैठे है जिनको देख के अब बस हंसी ही छूटती है। ऐसे देशो का वही हाल हुआ है जो की गली के बड़बोले और स्वघोषित गुंडों का होता है जो गली में तो खूब भोकते है पर मौका आनेपर बलभर कुट कुटाकर चले आते है।

हालाँकि कलम से विदेश घूमने में कोई फायदा नहीं क्युकी जब घर में आग लगी हो तो पडोसी के यहाँ पानी की सप्लाई नहीं की जाती है और जब खुद के देश में चिंताजनक स्थिति है तो बाहर क्या ताका झांकी करना। 

हमारे देश में सुव्यवस्था का नगाड़ा पीटने वाले नेतागण देश में कोरोना के नाम पर हो रही लूट में कानो में ऊँगली डाल कर बैठे है और जवाबदेही के नाम पर दुसरो की तरफ उंगलियां घुमा रहे है क्युकी अगर व्यवस्था सही में ठीक होती तो उनकी भी जवाबदेही तय होती और सब अपना अपना काम बखूबी करते पर लानत है ऐसे नेताओ पर जो की इस संकट समय में भी राजनीती से बाज नहीं आ रहे है और दिन दूनी रात चौगुनी छीछालेदर राजनीती खेल रहे है। इस विशाल देश में जहा सबसे अधिक युवा आबादी और करोडो सम्भावनाये है, ऐसे देश को मात्र राजनीती और राजनितिक गुलामी के गर्त में धकेल रहे है। मुझ जैसे सामान्य टैक्स भरने वाले के दिल में एक यही सवाल है की क्या होता है मेरे टैक्स के पैसो का जो कि तनख्वाह आने से पहले ही काट लेते है और मेडिकल व्यवस्था के नाम पर "मेरा परिवार मेरी जिम्मेदारी " जैसे नारो के साथ जीने को छोड़ देते है ?

मेरा आज का यह लेख किसी एक राज्य या किसी एक सम्प्रदाय मात्र के लिए नहीं है क्युकी मै अच्छी तरह समझता हूँ कि इस देश में राजनितिक चमचो की भी वैराइटी है जैसे की कोई भक्त है, कोई ५० पार के युवा नेता के खानदान के त्याग और समर्पण के कर्ज तले दबा हुआ चमचा है, कोई राज्य सरकारों का कट्टर समर्थक है, कोई ऐसे लोगो को सर पर बिठा के नचा रहा है जो की बाबूजी के विधायक दल के नेता होने पर भी कक्षा ८ न पार कर सके पर फिर भी हवा हवाई बातो से मुग्ध है और कई तो टोंटियों के गोदाम के मालिक के ऐसे चेले है मानो उनके बाद गोदाम की चाबी उनको ही मिलने वाली हो । 

मै किसी राजनितिक दल की कमियां गिनाने में उलझना नहीं चाहता पर मेरा मात्र इतना ही कहना है कि इन सारे तथाकथित जनप्रतिनिधियों ने सत्ता के शीर्ष पर रह कर शाषन किया या कुशाषन किया इनको खुद नहीं पता पर आज जब देश ऐसी समस्या से जूंझ रहा है तो बजाय की अपने गिरेबान में झाँकने के, ये लोग दूसरो का टीका टिपण्णी कर रही है मीडिया रूपी नारद मुनि को बखूबी यूज़ कर रहे है। इनको चाहिए कि पहले आईने के सामने खड़े हो के अपने आप से सवाल पूछे और जब मन जुग उत्तर मिल जाये तभी जनता के सामने घाघरा उठा कर नाचें क्युकि ख़ुशी में उनका वही हाल है जो की मोर का पंख फैला कर नाचते समय होता है।

बहरहाल देश काफी परेशांन है क्युकी दुकाने बंद है, जरुरी चीजों के अभाव में कीमते आसमान छू रही है। सामान्य जनता घरो से निकल नहीं सकती क्युकी हवा में कोरोना है पर चुनावी रैलियो में नहीं, डाक्टर मरीजों को सामान्य रुग्ण नहीं मान रहे क्युकी १०० रुपये की फीस से बढ़िया कमीशन पैथोलॉजी वाला दे रहा है। हर घंटे यहाँ-वहां एम्बुलेंस दौड़ रही है और सायरन सुनते सुनते लोगो का दिल बैठा जा रहा है। कमाल की बात तो यह है कि चेंज ऑफ़ सीजन में होने वाला वायरल फीवर अब नहीं आता और न ही होता है सर्दी जुकाम क्युकी इनके सारे कॉपीराइट कोरोना ने खरीद लिए है और मार्किट मे अपना सिक्का जमा लिया है।  मलेरिया, टाइफाईड, निमोनिया और पीलिया ने अब सन्यास ले लिया है क्यूंकि अब तो बस कोरोना नाम के बाहुबली की धौंस है और जिसको भी होता है बस कोरोना हो होता है। देश में ऐसे समस्या पहले कभी नहीं थी की घर बैठे बैठे कोरोना हो जाए और उपाय भी है तो बस घर में रहना, ऐसे में राज्य और केंद्र सरकारों की कोई खास जवाबदेही दिख नहीं रही और और कुछ दिखने दिखने को है भी तो वो है इच्छाशक्ति की भरपूर कमी वरना जिस मुंबई को बम धमाके और बाढ़ तक नहीं रोक पाई वो ऐसे लचर कभी न दिखती। हाल बस मुंबई का नहीं ख़राब है बल्कि तकरीबन-तकरीबन पुरे देश का यही माहौल है। 

कभी कभी ऐसा लगता है की सामाजिक आपाधापी में हमको इसका भान ही नही रहा की हम अपने चुने हुए सरकारों को कभी इस मुद्दे पर भी वोट दे की कितने नए सरकारी अस्पताल बने है और बनेंगे और सड़के किस क्वालिटी की होंगी पर अब भी इतना जरुर तय करे की जिसने काम किया नहीं उसी दुबारा अपने द्वार पर न खड़ा होने दे। लोगो को विकास के सही मायने समझने की जरुरत है न की झूठे नेताओ के घड़ियाली आंसुओ को तवज्जो देने की क्युकी ये घड़ियाली आंसू आपका और हमारा पेट नहीं भरेंगे और ना हीं तो उस वक़्त सहारा बनेंगे जब हम आप वेंटीलेटर और ऑक्सीजन की आस में दर-ब-दर भटक रहे होंगे।

समय जनजागरण का है और अपनी सुरक्षा खुद करने का है क्युकी हाल ही के दिनों में हमने मुख्यमंत्रियों को मीटिंग में सोते और मोबाइल चलाते देखा है जिससे की उनकी गंभीरता का अंदाजा लग चुका है और ऐसे में इनसे उम्मीद करना छाती पर बैठे गेहुँवन सांप से बिनती करने जैसा है इसीलिए अपनी जिम्मेदारी खुद उठाइये और अपने परिवार की रक्षा कीजिये। 

शब्दों को विराम देते हुए बस यही आग्रह है की कोई कितना भी चिढ़ाए या देख कर मुह बनाये पर मास्क और सेनेटाइजर का साथ तब तक न छोड़े जब तक की आपका मन ये तय न कर ले की बस समस्या ख़तम हो गयी वरना मास्क के अलावा कोरोना भी समाज का एक हिस्सा बन कर रह जायेगा। 

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