Monday, July 13, 2020

नेताजी का धन्यवाद

शीर्षक से आपको शायद अंदाजा हो गया होगा की इस लेखनी के मुख्य अदाकार हमारे देश के नेताजी लोग है जिनके रहमोकरम से भले ये देश चल पाए या नही, व्यवस्थाएं सही हो ना हो पर श्रेय लेने में प्रथम पंक्ति में होते है और आजादी से लेकर श्रृष्टि के अंत तक ये ही लोग अपनी कृपा बरसाते रहेंगे। तो चलिए ज्यादा समय सब्जेक्ट बताने के बजाय इनके गुणगान में २-४ किस्से बयान किए जाए।

इस श्रृष्टि में जीवित रहने के लिए जैसे आपको हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता है वैसे ही हमारे महान भारत वर्ष में आपको एक चौथे स्तंभ कि आवश्कता है और वह है नेताजी और ये में यूहीं आपके मनोरंजन के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि ये तो एक परम सत्य है। नेताजी के चक्कर तो आपके जन्म से ही शुरू हो जाता है।
अमूमन घर ने बच्चो का जन्म होते ही आप ख़ुशी से सराबोर होते है भविष्य के सुनहरे सपने देखते है पर इन सपनो की गाडी में ब्रेक तब लगता है जब आपको अस्पताल वालों से दो दो हाथ करना पड़ता है क्युकी अस्पताल वाले तिल का ताड़ और बिल का पहाड़ आपके मुंह पर पटक देते है। कई परिवारजन हिचकिचाहट और सामाजिक प्रतिष्ठा बचाने लिए दांत पीस कर भुकतान कर देते है पर एक धनरहित व्यक्ति के पास कोई उपाय नहीं बचता तो नेताजी के द्वार मदत की पुकार करनी पड़ती है और नेताजी से मिल कर २-४ गुर्गे साथ ले जाना पड़ता है ताकि नेताजी के नाम के धौंस से बिल में कुछ छूट मिल जाएं और मिले भी क्यों नहीं आखिर आप नेताजी के जनता गण जो है जो कि हर ५ साल में अपना नाखून जो रंगवाते है। 
मुद्दा यही खत्म नहीं होता और कई बार तो जन्म प्रमाण पत्र भी वही ४ गुर्गे दिलवाते है क्युकी इस देश की सरकारी व्यवस्थाएं किसी से छुपी नहीं है और सरकारी मुलाजिमों से बेहतर काम टालना कोई नहीं जानता। मेरी खुद की बेटी के मामले में चक्कर लगा चुका हूं तो मुझसे बढ़िया आपबीती कौन बता पाएगा कि कैसे सरकारी बाबू समय पर दफ्तर आते ही चाय और गप्पे की आधे घंटे के अंतराल पर जाते है और सफ़र कि थकान मिटाते है और फिर सहकर्मियों संग कल दफ्तर से निकलने से लेकर रात्रिभोज के सारे पकवानों की चर्चा होती है। इस बीच अगर आप उनको गुड मॉर्निंग कहने की कोशिश भी करे तो भी आपको ऐसे देखते है मानो आपने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग लिया हो। 
तो भई आखिरकार जरूरी हो ही जाता है कि नेताजी के नाम का सिक्का चलाया जाए तो अपना काम बनाया जाए।

जन्म से आगे बढ़े तो तीन चार साल में मुन्ना मुन्नी झोला झंडा लेकर पढ़ने को तैयार हो जाते है और आप चाहे आप देश के किसी भी कोने में हो एक बढ़िया स्कूल में एडमिशन कराने में आपकी चप्पलें घिस ही जाती है और बटूवे में छेद हो जाता है। स्कूल में एडमिशन कराना एक बहुत ही जटिल समस्या है और कई बार तो बिना नेताजी के दखल के आप इस समस्या से भी पार नहीं पा सकते क्युकी अधिकतर स्कूलों के मैनेजमेंट को नेताजी अपने प्रभाव में रखते है और कई स्कूल इनकी कृपा या काले धन से ही चलते है जिसपर माता सरस्वती अपने आशीर्वाद की कृपा बरसाकर श्वेत रंग का बना देती है। इतना ही नहीं नेताजी लोग अपने भावी वोटरों को रिझाने के लिए समय-समय पर स्कूल के कार्यक्रमों में आकर अपनी झलक देते रहते है ताकि चाहे नेताजी चुनाव लड़ें या उनका खानदान, जीतने में कोई शंका ना रह जाए।

अगर आप कभी छोटे मोहल्लों में रहे है तो आप बिल्कुल जानते होंगे कि चुनाव के मुद्दों में साफ पानी जरूर जगह बनाता है और जहा पर नेताजी कि कृपा दृष्टि नहीं जाती या लोग भाव नहीं देते वहां पानी मिलना कितना मुश्किल होता है। आजादी के ७५ सालों बाद भी यह मुद्दा इस देश में है ये सोच कर दुख तो जरूर होता है लेकिन अगर मुददे ही खत्म हो जाएंगे तो नेताजी क्या घास छीलेंगे??  जैसे आप अपनी जीविका के साधनों का ध्यान रखते है वैसे ही इस देश के नेतागण रोटी कपड़ा और मकान के मुद्दों को जिंदा रखते है और आपूर्ति कब और कितनी करनी है इसका बराबर ध्यान रखते है ताकि जनता ना बिदके क्युकी सब सही चलने लगा तो नेताजी को कैसे कोई याद करेगा और उनका तो आस्तित्व ही ख़तम हो जाएगा।

अटल जी के जमाने में एक गाना निकला था "सड़क में गडहा बा कि गड़हे में सड़क बा" हालाकि बाद में वो नेताजी उसी दल ने शामिल हो गए और गाना भूला गए भले समस्या ख़तम नहीं हुयी। नगरपालिकाएं भी नेताजी लोगो का भरपूर सम्मान करती है और जहां कहीं नेताजी का दौरा होता है वहां की सड़कों को शादी की दुल्हन की भांति तत्काल ठीक करती है ताकि नेताजी की महंगी गाड़ी में भी नेताजी को एक भी जर्क ना लगे भलबे जनता की कमर गड्ढों में गाड़ी चलाते चलाते टूट क्यूं न जाए। 

जब इस श्रृष्टि का निर्माण हुआ तो देने वाले ने हर चीज को समानुपात में दिया जैसे की ३ ऋतुएं, अन्न उपजाने योग्य और वातावरण अनुकूल जमीन, नदी तालाब और बहुत कुछ ताकि संतुलन बराबर बना रहे लेकिन जब इंसान ने ये मामला अपने हाथ में लिया तो इस बात का बराबर ध्यान रखा कि  कहीं सबको सब बराबर ना मिल जाए वरना उनका सम्मान कौन करेगा और इसीलिए उन्होंने यह सब कुछ रोक दिया जैसे किसानो का पानी, विद्यार्थियों और कारखानों की बिजली और गरीबो का राशन ताकि हर किसी को दर दर भटकना न पड़े और सारा निदान एक ही द्वार पर हो जाए। जब जरूरते होंगी तो ही न लोग नेताजी की द्वार फरियाद लेकर जायेंगे और काम निकलवाएंगे पर कभी सोचा है इस समाज सेवा से नेताजी को क्या फायदा मिलेगा ?? 

हाँ तो भई बेचारे नेताजी आपके भले के लिए किसानो की अनुपजाऊ जमीन सस्ते कीमतों में खरीद कर उसपर पर महंगे-महंगे स्कूल कॉलेज खुलवाएंगे, बीमारों के लिए महंगे-महंगे अस्पताल खुलवाएंगे और समाज को नए डॉक्टर मिलते रहे इसलिए मेडिकल कालेज भी बनवाएंगे जिसमे पढाने की औकात किसी गरीब की नहीं होगी। कारखाने के मालिकों को सेवा देके बोर्ड और कमिटी के मेंबर बनेंगे और सालो साल आपकी सेवा करते रहेंगे ताकि कोई नया नौसिखिया संतुलन ख़राब न कर दे। वैसे मैंने कभी देखा नहीं की कोई नेता या उनके खानदान का कोई सपूत कभी नौकरी किया हो (कुछएक को छोड़ कर पर वह गिनती भी शायद २ अंको न छू पाए) क्युकी उनके भाग्य में तो शीर्ष के स्थान ही होते है और हो भी क्यों न, बेचारे नेताजी ने अपनी जिंदगी आपकी सेवा में जो खपाई है तो इतना छोटा सा अधिकार तो है। 

ये सब तो नेताजी और उनके खानदान के बारे में था पर कभी सोचा है की नेताजी के गुर्गे और उनके खानदान का क्या होता है तो भई उनका होता कुछ ऐसा है की वो लोग जवानी में छाती चौड़ी कर के चलते है और जैसे-जैसे उम्र ढलती है, बैठ कर अपनी जवानी को कोसते है।  नेताजी के प्लान अनुसार गुर्गो के भी बच्चे नहीं पढ़ते और कही न कही किसी मॉल में झाड़ू पोछा करते मिल जाते है और वो भी नेताजी के कृपा से क्युकी नेताजी का मॉल में शेयर होता है और इसी तरह छोटे मोटे काम तो दिलवा ही सकते है और फिर एक नयी पीढ़ी नेताजी के बोझ तले दब जाती है और हर रैली और प्रदर्शनों में मुफ्त की भीड़ कम नहीं हो पाती।
 
अगर सड़कों पर आप निकलते है तो सड़क से ज्यादा आपको नेताजी के बैनर और पोस्टर नजर आते है और हर बैनर में नेताजी कहीं तो मुस्कुराते, कहीं किसी से फूल लेते और कहीं तो फुल साइज फोटो में जिसमे उनकी महंगी चप्पल से लेकर सदरी बराबर दिखती है में न जाने कहां निकल जाने की कोशिश में होते है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की अधिकतर बैनर पोस्टर नेताजी खुद छपवाते हैं और जनता की तरफ से खुद का अभिवादन भी खुद ही कर लेते है। नेताजी के खुद के ही पैसों से छपाये हुए बैनर पोस्टर में खुद को ही "हार्दिक स्वागत" और "लख लख बधाइयाँ" वाले पोस्टर देखकर जरा भी भ्रमित न हो क्यूंकि इसे जनता ने नहीं लगवाया है क्युकी बेचारी जनता तो २ जून की रोटी की कवायत में लगी है और अपने मासिक बजट से निकाल कर खर्चने को २ नया पैसा नहीं होता। ये तो किस्सा कुछ ऐसा होता है जैसे की अध्यक्ष महोदय ने अध्यक्ष की उपस्थिति में खुद को अध्यक्ष नियुक्त कर लिया और १०*२० के बड़े बड़े पोस्टर लगवा कर खुद को ही बधाई दे डाली। बहुतेक जगह तो जनता जनार्दन का नाम भी सौजन्य में लिखवा लेते है ताकि जनता कंफ्यूज रहे की हमारे गांव, मोहल्ले से ही किसी ने छपाया होगा। जितना बड़ा मुद्दा, उतना ही बड़ा पोस्टर और पूरा ध्यान रखा जाता है कि सड़क पर एक भी बिजली का खंभा छूट न जाए ठीक वैसे जैसे की चुनाव प्रचार में गली मोहल्ले नहीं छूटते भले अगले कुछ दिनों में नेताजी जनता को सलाम करते कूड़े के ढेर में नजर आए या किसी गरीब की झोपडी पर छेदों को ढकने के काम में आए।

वैसे नेताजी की तारीफ़ में लिखते लिखते कलम सूख जायेगी इसीलिए लेखक को खुद को रोकना पड़ता है ताकि किसी और मुद्दे पर अपनी कलम घसीट सके। तो भई कहना और समझाना बस इतना है की जो भी हो रहा है वो नेताजी की कृपा से हो रहा है और जो भी होगा वो भी नेताजी की कृपा से ही होगा और जितना हो सके इस अनुकम्पा से बचने का भरपूर प्रयास करें और नेताजी का हार्दिक धन्यवाद दूर से ही करते रहे। 


कोशिश करियेगा की किसी नेताजी के हथ्थे ये प्रयास न चढ़ जाए पर जनता जनार्दन से जरूर साझा करियेगा और कोई त्रुटि रह गयी हो तो जरूर बताइयेगा।

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