Saturday, May 1, 2021

अच्छी व्यवस्थाएं आपने चाही ही कब थीं ?

नमस्कार पाठको ,

विषय से एकदम सट कर फिर पूछता हूँ की इस देश में अपने सुव्यवस्था, सुसाशन, बेहतरीन मेडिकल सेवाएं, सड़क, रेल, बिजली और न जाने क्या जो की इस सूची का हिस्सा बन सकता है ये सब आपने सच मे चाही ही कब थी ? इस देश की जनता अगर कुछ चाहती है तो बस खुद का भला और इससे आगे कुछ नहीं पर ऐसा पढ़ते और सुनते हुए बुरा भी मानती है क्यूंकि स्वभावानुसार इंसान आपने दोष काम और दुनिया के अधिक गिनता है। 
हमने हमेशा से ही वो ऊँगली पकड़ी जहा पर मुफ्तखोरी, ढकोसलेबाजी, स्वांग और इमोशन था, हम हमेशा से ही यही चाहते थे की हमारी हर व्यवस्था की जिम्मेवारी कोई और ले ताकि मौका पड़ने पर हम छाती पीट पीट कर उस जिम्मेवार को गाली दे सके। हर गली मोहल्ले पर आस्था के केंद्र तो बना लिए पर डॉक्टरो और नर्सो की गिनती बढ़ाने की और कभी नहीं सोचा क्यूंकि अमर जो ठहरे। 

हमने अगर कुछ चाहा तो बस अपने जाति, अपने धर्म का उम्मीदवार जो की समाज कल्याण के बदले अपना खुद का कल्याण करे तो भाई उनको दोष क्यों देना क्यूंकि हमारी अपेक्षाएं ही अलग थी। हमने किसी को पंद्रह लाख के लिए चुना तो किसी तो बेरोजगारी भत्ते के लिए, किसी को हमने बिजली पानी मुफ्त के लिया चुना तो किसी को आरक्षण के लिए तो फिर दोष दें यही क्यों ?

और हाँ अगर किसी ने मेडिकल फैसिलिटी, बढ़िया सड़क, बिजली , स्वच्छ पानी, शौचालय और सुरक्षा के लिए चुना है जाए उस पार्षद, विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के पूछे की क्या हुआ है और क्या न हुआ क्यूंकि जवाबदेह भाग नहीं सकता और अगर चेष्टा भी की तो उसे आइना दिखा का खुद बा खुद भगा दिया जायेगा।

Monday, April 19, 2021

मेरा परिवार मेरी जिम्मेदारी

 नमस्कार पाठको,


कई दिनों से विचारो का मंथन मन में हो रहा है पर आसपास फैले भय का माहौल देख कर मन इतना अशांत है की कुछ सूझता ही नहीं और जब खुद के मन में  बेचैनी हो तो बड़ा मुश्किल हो जाता है स्थिर बैठ का अपने विचारो को लिख पाना। हालांकि ख़याली घोड़ो को दौड़ने की कुछ खास कोशिश मत कीजिये क्युकी कारण बहुत सी सामान्य और जाना माना है क्युकी इसी कारण ने विश्व को वर्ष २०२० मे घुटनो पर ला दिया था पर दिल ने आस न छोड़ी  और लोग ऐसा मनाने लगे थे की कैसे भी साल ख़तम हो और पनौती हटे ताकि साल ख़तम समस्या ख़तम लेकिन गुरु इतना बड़ा भय इतनी जल्दी कैसे अपना नाम मिट जान दे और वो भी ऐसे देश में जहा की शादिया भी हफ्तों उत्सव का माहौल बनाती है। हमारे यहाँ तो अतिथि भी आते है तो २-४ दिन सेवा सत्कार कराते है और फिर ये तो कोरोना है जो की दूसरे देश से इतना वीजा पासपोर्ट का झमेला निपटा कर आया है तो ये ऐसे कैसे चुप चाप निकल ले।

तो भाई बात कुछ ऐसे बढ़ी की हमको क्या सारी दुनिया को लगा था की वर्ष २०२१ आएगा और नयी खुशहाली लाएगा और फिर सब सामान्य हो जायेगा जैसे कि मोदीजी विदेशो के दौरे कर पाएंगे, दिल्ली के स्वघोषित  बादशाह फिर सड़को पर इंक और तमाचों से नवाजे जायेंगे और खानदानी पप्पू अपने अनाप शनाप बयानों से जनता जनार्दन को खुश कर विरोधी दलों का चुनावी प्रचार भी स्वयं करेगा लेकिन फिर बात वही हुई की "दिल के अरमान आंसुओ में रह गए"

फिल्म अंदाज अपना अपना में गोगा कहता है की आया हु तो लूट के जाऊंगा ठीक वैसे ही कोरोना कहता है की सब नोच घसोट के जाऊंगा वैसे भी इतना दूर से आया है तो फिर धूम तो मचनी ही थी और वैसे मच भी रही है बस फर्क सिर्फ इतना है कि इस धूम में ढोल-नगाड़ो का शोर नहीं है बल्कि एम्बुलेंस के सायरनों की गूँज है और ऑक्सीजन के अभाव में तड़पता मरीजों की चीख पुकार है जिसको देख सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है और मनस्थिति का तो पूछिए ही मत साहब की क्या हाल है। अब तो न भजन में मन लगता है न भोजन में क्युकी अबकी बार की जो मनस्थिति है वो पूरी तरह हिली हुई है। वर्ष २०१९ तक सारी दुनिया को चुटकी में ख़तम कर देने की क्षमता रखने वाले देश अब दूसरे देशो की वैक्सीन सप्लाई की ताक में घरो में भीगी बिल्ली की भांति दुबककर बैठे है जिनको देख के अब बस हंसी ही छूटती है। ऐसे देशो का वही हाल हुआ है जो की गली के बड़बोले और स्वघोषित गुंडों का होता है जो गली में तो खूब भोकते है पर मौका आनेपर बलभर कुट कुटाकर चले आते है।

हालाँकि कलम से विदेश घूमने में कोई फायदा नहीं क्युकी जब घर में आग लगी हो तो पडोसी के यहाँ पानी की सप्लाई नहीं की जाती है और जब खुद के देश में चिंताजनक स्थिति है तो बाहर क्या ताका झांकी करना। 

हमारे देश में सुव्यवस्था का नगाड़ा पीटने वाले नेतागण देश में कोरोना के नाम पर हो रही लूट में कानो में ऊँगली डाल कर बैठे है और जवाबदेही के नाम पर दुसरो की तरफ उंगलियां घुमा रहे है क्युकी अगर व्यवस्था सही में ठीक होती तो उनकी भी जवाबदेही तय होती और सब अपना अपना काम बखूबी करते पर लानत है ऐसे नेताओ पर जो की इस संकट समय में भी राजनीती से बाज नहीं आ रहे है और दिन दूनी रात चौगुनी छीछालेदर राजनीती खेल रहे है। इस विशाल देश में जहा सबसे अधिक युवा आबादी और करोडो सम्भावनाये है, ऐसे देश को मात्र राजनीती और राजनितिक गुलामी के गर्त में धकेल रहे है। मुझ जैसे सामान्य टैक्स भरने वाले के दिल में एक यही सवाल है की क्या होता है मेरे टैक्स के पैसो का जो कि तनख्वाह आने से पहले ही काट लेते है और मेडिकल व्यवस्था के नाम पर "मेरा परिवार मेरी जिम्मेदारी " जैसे नारो के साथ जीने को छोड़ देते है ?

मेरा आज का यह लेख किसी एक राज्य या किसी एक सम्प्रदाय मात्र के लिए नहीं है क्युकी मै अच्छी तरह समझता हूँ कि इस देश में राजनितिक चमचो की भी वैराइटी है जैसे की कोई भक्त है, कोई ५० पार के युवा नेता के खानदान के त्याग और समर्पण के कर्ज तले दबा हुआ चमचा है, कोई राज्य सरकारों का कट्टर समर्थक है, कोई ऐसे लोगो को सर पर बिठा के नचा रहा है जो की बाबूजी के विधायक दल के नेता होने पर भी कक्षा ८ न पार कर सके पर फिर भी हवा हवाई बातो से मुग्ध है और कई तो टोंटियों के गोदाम के मालिक के ऐसे चेले है मानो उनके बाद गोदाम की चाबी उनको ही मिलने वाली हो । 

मै किसी राजनितिक दल की कमियां गिनाने में उलझना नहीं चाहता पर मेरा मात्र इतना ही कहना है कि इन सारे तथाकथित जनप्रतिनिधियों ने सत्ता के शीर्ष पर रह कर शाषन किया या कुशाषन किया इनको खुद नहीं पता पर आज जब देश ऐसी समस्या से जूंझ रहा है तो बजाय की अपने गिरेबान में झाँकने के, ये लोग दूसरो का टीका टिपण्णी कर रही है मीडिया रूपी नारद मुनि को बखूबी यूज़ कर रहे है। इनको चाहिए कि पहले आईने के सामने खड़े हो के अपने आप से सवाल पूछे और जब मन जुग उत्तर मिल जाये तभी जनता के सामने घाघरा उठा कर नाचें क्युकि ख़ुशी में उनका वही हाल है जो की मोर का पंख फैला कर नाचते समय होता है।

बहरहाल देश काफी परेशांन है क्युकी दुकाने बंद है, जरुरी चीजों के अभाव में कीमते आसमान छू रही है। सामान्य जनता घरो से निकल नहीं सकती क्युकी हवा में कोरोना है पर चुनावी रैलियो में नहीं, डाक्टर मरीजों को सामान्य रुग्ण नहीं मान रहे क्युकी १०० रुपये की फीस से बढ़िया कमीशन पैथोलॉजी वाला दे रहा है। हर घंटे यहाँ-वहां एम्बुलेंस दौड़ रही है और सायरन सुनते सुनते लोगो का दिल बैठा जा रहा है। कमाल की बात तो यह है कि चेंज ऑफ़ सीजन में होने वाला वायरल फीवर अब नहीं आता और न ही होता है सर्दी जुकाम क्युकी इनके सारे कॉपीराइट कोरोना ने खरीद लिए है और मार्किट मे अपना सिक्का जमा लिया है।  मलेरिया, टाइफाईड, निमोनिया और पीलिया ने अब सन्यास ले लिया है क्यूंकि अब तो बस कोरोना नाम के बाहुबली की धौंस है और जिसको भी होता है बस कोरोना हो होता है। देश में ऐसे समस्या पहले कभी नहीं थी की घर बैठे बैठे कोरोना हो जाए और उपाय भी है तो बस घर में रहना, ऐसे में राज्य और केंद्र सरकारों की कोई खास जवाबदेही दिख नहीं रही और और कुछ दिखने दिखने को है भी तो वो है इच्छाशक्ति की भरपूर कमी वरना जिस मुंबई को बम धमाके और बाढ़ तक नहीं रोक पाई वो ऐसे लचर कभी न दिखती। हाल बस मुंबई का नहीं ख़राब है बल्कि तकरीबन-तकरीबन पुरे देश का यही माहौल है। 

कभी कभी ऐसा लगता है की सामाजिक आपाधापी में हमको इसका भान ही नही रहा की हम अपने चुने हुए सरकारों को कभी इस मुद्दे पर भी वोट दे की कितने नए सरकारी अस्पताल बने है और बनेंगे और सड़के किस क्वालिटी की होंगी पर अब भी इतना जरुर तय करे की जिसने काम किया नहीं उसी दुबारा अपने द्वार पर न खड़ा होने दे। लोगो को विकास के सही मायने समझने की जरुरत है न की झूठे नेताओ के घड़ियाली आंसुओ को तवज्जो देने की क्युकी ये घड़ियाली आंसू आपका और हमारा पेट नहीं भरेंगे और ना हीं तो उस वक़्त सहारा बनेंगे जब हम आप वेंटीलेटर और ऑक्सीजन की आस में दर-ब-दर भटक रहे होंगे।

समय जनजागरण का है और अपनी सुरक्षा खुद करने का है क्युकी हाल ही के दिनों में हमने मुख्यमंत्रियों को मीटिंग में सोते और मोबाइल चलाते देखा है जिससे की उनकी गंभीरता का अंदाजा लग चुका है और ऐसे में इनसे उम्मीद करना छाती पर बैठे गेहुँवन सांप से बिनती करने जैसा है इसीलिए अपनी जिम्मेदारी खुद उठाइये और अपने परिवार की रक्षा कीजिये। 

शब्दों को विराम देते हुए बस यही आग्रह है की कोई कितना भी चिढ़ाए या देख कर मुह बनाये पर मास्क और सेनेटाइजर का साथ तब तक न छोड़े जब तक की आपका मन ये तय न कर ले की बस समस्या ख़तम हो गयी वरना मास्क के अलावा कोरोना भी समाज का एक हिस्सा बन कर रह जायेगा। 

Wednesday, April 7, 2021

मुख़्तार अंसारी की अंतिम रोड यात्रा

मुख़्तार अंसारी, आज ये नाम सोशल मीडिया होने के कारण हर किसी के जबान पर है और न्यूज़ चैनल वाले तो इसे ऐसे भुना रहे हो मानो मदर टेरेसा के बाद इसी का नाम हो लेकिन यकीं माने तो इस देश और मीडिया हाउस के लिए इससे अधिक शर्म की बात हो ही नहीं सकती की वो लोग पूर्वांचल के ऐसे बाहुबली गुंडे को फेमस कर रहे है जिसका की नाम लेना भी पाप होन चाहिए। 

वैसे आजकल के डिजिटल ज़माने में सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है बस जरुरत है तो बस ढूंढ़ने की और बस एक क्लिक में सारा काला चिठ्ठा खुल कर सामने आ जायेगा हालॉकि कई लोग इसे अपने हिसाब से मसीहा और हीरो की तरह भी लिखेंगे क्युकी वो उनका पेशा है और उससे ऊपर उनसे उम्मीद करने भी नहीं चाहिए। एक न्यूट्रल लेखक की नजर से देखे तो पूर्वांचल के नामी बदमाशों मुन्ना बजरंगी, मुख़्तार अंसारी और न जाने कई नाम जिनकी सूची आप समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के विधायक और पूर्व विधायक में आसानी से पा सकते है और इनकी कारस्तानियाँ पढ़ सकते हैं । पूर्वांचल में मुख़्तार अंसारी एक अलग पहचान के साथ आगे बढ़ा और उसने वसूली और रंगदारी के लिए सफ़ेद कोट वाले धरती के भगवानो को निशान बनाया। 

गाजीपुर में खानदानी बिज़नेस पॉलिटिक्स होने के साथ साथ मुख्यतः अगर आप मऊ जिले के लोगो से इसके बारे में पूछेंगे तो बड़ी ही आसानी से कोई भी इसके किस्से आराम से पढ़ देगा क्युकी गुंडागर्दी के साथ साथ डाक्टरों से रंगदारी वसूलने का जो ताज इसके सर पे है वो शायद कोई और न कमा पाएगा। अगर सरल शंब्दो में कहे तो पाप का घड़ा सर पर ले कर घूम रहा है बस देखना ये है की वर्तमान सरकार के मुखिया इस घड़े को फोड़ दहीहंडी वाली ख़ुशी दे पाते है या नहीं। 

बात २०१० की है और मुझे ठीक से याद है की मऊ में अपनी माँ के आपरेशन के सिलसिले में डाक्टर पी एल गुप्ता नर्सिंग होम में था क्युकी अगर पूर्वी यूपी में बनारस के बाद कोई जिला है जहा बेहरतीन मेडिकल फैसिलिटी है तो वह मऊ ही है और वही रंगदारी का गढ़ है मुख़्तार अंसारी का जो की क्लिनिक में गुंडे भेज भेज कर वसूली करवाता था और न मिलने पर गोलीबारी हो जाना बहुत ही आम बात थी।  प्रदेश सरकार का सम्पूर्ण समर्थन और बड़े बड़े आकाओ के मूकदर्शिता पर जितना हो सकता था उससे अधिक उत्पात मच रहा था। एक दिन की बात है की काफी देर रात में नर्सिंग होम से कुछ १००-२०० मीटर की दुरी पर काफी शोरगुल था ऐसा साफ़ लग रहा था मानो की कही गुंडई अपनी चरम पर हो हालांकि गार्ड ने मैं गेट बंद रखा था और अनजान शहर था इसीलिए बहुत से लोग मेरी ही तरह अनजान बन कर सो गए पर मन में कही तो बेचैनी थी रात की घटना जानने की इसीलिए सुबह होते ही यहाँ वहा पूछ पड़ताल शुरू की तो पता चला कि रात को एक नर्सिंग होम में रंगदारी न देने पर बवाल हुवा था और नर्सिंग होम पूरी तरह से तोड़ दिया गया था और फायरिंग भी हुयी हालांकि कोई मरा या नहीं ये किसी को भी जानकारी नहीं थी क्युकी जिस प्रदेश का बाहुबली बिधायक जेल में सलाखों के पीछे से पूरा जिला चला रहा हो वहा पुलिस एक लाचार मुलाजिम से अधिक कुछ भी नहीं सो सकती। समस्या ये है वही लाचार मुलाजिम किसी सामान्य जन को इस प्रकार कूट देता था की क्या कहना पर किसी बाहुबली की करतूत के आगे विवश और लाचार था। दोपहर हुयी तो जिले के राजनीती से जुड़े रिश्तेदार इस उम्मीद से मुख्य डाक्टर गुप्ता से मिले ताकि  राजनीतिक शख्शियत दिखा कर कुछ रियायत ले लें पर यकीन मानिये जिस प्रकार से डॉक्टर साहब जवाब देते गए और रंगदारी और अपनी लाचारी के बारे में बताया तो रियायत की बात करने की रिश्तेदारों की हिम्मत ही न हुयी और दबे पैर गुप्ता जी को उनको नोबेल प्रयास की बधाई देते हुए उनको वहां से निकलना पड़ा। 

मै इतना तो जरूर जानता हूँ की इस देश में बहुत से ऐसे लोग है जो अभी भी मुख़्तार अंसारी की पैरवी करने आगे आएंगे और कई लोग इसे धरम विशेष से भी जोड़ेंगे लेकिन अगर आपके अंदर इंसानियत अभी भी जिन्दा है तो कभी २००५ में हुई स्व. कृष्णानद राय की निर्मम हत्या के बारे में पढ़ लीजियेगा ताकि आपको भी एह्साह हो जाये की कैसे कानून को जूतों की नोक पर रख का उत्तर प्रदेश में गुंडों को पाला और पोसा गया और कई बार तो इनको विधानसभा और लोकसभा तक में भेजा गया जिससे की इनको इनकी कारस्तानी का उपयुक्त उपहार मिलता रहे। आपको यह भी जानना जरुरी है की कैसे एक जनप्रतिनिधि की दोपहर में घेर कर एक-४७ की ५०० राउंड गोलियो से छलनी कर के गुंडागर्दी की नयी मिसाल साबित की जाती रही है और सर पर लाल टोपी पहने साईकिल और हाथी से चलने का ढोंग करने वाले इनपे केस चलाने वालो पर दबाव बनाते रहे है और दुनिया को लोहिया और समाजवाद की दुहाई देते रहे है। समस्या यह है कि "जस राजा तस प्रजा" के तर्ज पर इनके जातिवादी समर्थक इनको सर पर बैठाते रहे है। इस घटना की पुष्टि के लिए कुछ लिंक शेयर कर रहा हु ताकि मेरी न सही पर अखबार और विकिपीडिया पर इनकी कारस्तानी के किस्से पढ़ सके और समझने की कोशीश मात्र करे की इतिहास बहुत काला है। 


१) https://en.wikipedia.org/wiki/Krishnanand_Rai

२) https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/others/bjp-mla-krishnanand-rai-murder-case-when-7-dead-bodies-were-laid-together-500-rounds-were-fired/articleshow/81907756.cms

३) https://www.timesnownews.com/columns/article/who-killed-mla-krishnanand-rai-uttar-pradesh-mukhtar-ansari-munna-bajrangi-up-police/460847


आज ये बात इसिलिये लिख डाली क्यूंकि आज के दिन (अप्रैल ६ , २०२१ ) को  अंसारी को पंजाब से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा है ताकि धागा कायदे से खोला जाए लेकिन जिस प्रकार मीडिया की बेचैनी नजर आ रही है उसके क्या कहने। कभी कभी पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों पर पूरा प्राइम टाइम चला देने वाले आज उसे अपने चीफ एडिटर से अभी अधिक भाव देते नजर आ रहे है और यूपी पुलिस की गाड़ियों के पीछे ऐसे चल रहे है मानो मुख़्तार के ढकार को भी कवर करने की कोशिश में है। हालांकि उनकी इस फिजूल डीजल खर्ची पर हमें कोई कष्ट नहीं पर कष्ट इस बात का है कि जो लोग इसे लोकतंत्र और मीडिया की आजादी कहते है ये घटना उनके मुँह पर एक जोरदार तमाचे और कालिख से कम कुछ नहीं और सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है की लोग ऐसी बेफजूल की न्यूज़ देख कर इनकी TRP भी बढ़ा रहे है जिससे इनके इस घटिया प्रयास को बल मिल रहा है। 

हालांकि मेरा मानना है की मुख़्तार मियाँ की पंजाब से उत्तर प्रदेश तक की यात्रा सफल रहेगी पर हां साथ ही मुख्तार मियाँ को मुन्ना बजरंगी की मौत के किस्से जेल में जरुर सुनने और पढ़ने चाहिए। 

Monday, April 5, 2021

सर सलामत तो पगड़ी हजार

 सर सलामत तो पगड़ी हजार, जान सलामत तो फिर मस्ती हजार 


नमस्कार मित्रो, बड़ी ही पुरानी कहावत है की सर सलामत तो पगड़ी हजार तो सोचा क्यों न आज इसी को अपना शीर्षक बना लूँ और जैसे नाम देखते ही फिल्म का अंदाजा हो जाता है वैसे ही आप विषय की कल्पना कर लें। चलिए इस बात को यही छोड़ते है और आगे बढ़ते है ताकि कुछ और मुख्य मुद्दों पे प्रकाश डाला जाये और अपने इस सामाजिक स्थिति को व्यंग्य के रूप से साझा किया जाए। 

जब भी इस कहावत को सुनता हु तो न जाने क्यों हेलमेट की याद आ जाती है क्युकी सबसे पहली वही चीज है जो की इस कहावत पे फिट बैठती है अब मामला चाहे क्रिकेट का हो चाहे दोपहिया गाडी चाहे तो कंस्ट्रक्शन लाइन, आप अधिकतर लोगो को हेल्मेंट पहने देखंगे क्युकी जैसे की रहीम दास जी भगवन नारायण के लिए कहते है कि,

रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिय धाइ। 

ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ || 

रहीम दास के अनुसार न जाने किस रूप में भगवन मिल जाये वैसे ही न जाने कहा से कुछ आ लगे इस सरीर के मुकुट पर और जीवन लीला समाप्त हो जाए  तो भैया खतरा टालो और सर सलामत रखो पर जिनको ब्रम्हा जी का आशीर्वाद प्राप्त है वो इस ज्ञान को इगनोर कर सकते है। हालांकि हेलमेट के मुद्दे को ज्यादा नही खींचना चाहता क्युकी ऐसे मुद्दे पर बात करने से वही बात होगी की मानो पड़ोस में लड़ाई चल रही हो और पडोसी तानपुरे और तबले बजाये जा रहे है हालांकि सच्चाई ये भी है कुछ ख़ुशी में बजाते भी है लेकिन क्लियर कर दू कि लेखक न तो ये सब बजाते है और ना ही अपवाद में पड़ना चाहता है। 

जिस समय ये लेख लिखा जा रहा है उस समय यह समूचा विश्व ४-५ फ़ीट के छोटी नाक वाले चीनी लोगो द्वारा निर्मित कोरोना वायरस से जूझ रहा है जिसमे की विश्व स्वास्थ्य संस्था (WHO) भी लगभग लाचार और कंफ्यूज नजर आ रही है।  कंफ्यूज इसलिए कह रहा हु क्यूंकि उनके निर्देशों में कही भी गंभीरता नहीं है और अपने ही बयानों से पलट पलट के कई बार उन्होंने नए कीर्तिमान भी स्थापित किये है जिससे कि उनके ज्ञान और रिसर्च पर बच्चा भी बहस कर सकता है। कई बार तो ऐसा भी एहसास होता है काले कोट पेंट में बैठे वहां के पॉलिसी मेकर चंदे मांगने वालो से ज्यादा कुछ भी नहीं क्युकी जितना फोकस उनका डोनेशन पे रहता है उसका आधा भी अगर प्रॉब्लम के निपटारे और सही तरीके खोजने मे लगाते तो शायद आज ऐसे शब्दों से उनका सम्मान न करना पड़ता। 

हमारे देश को अनेको बार बीमारियों और महामारियों का सामना करना पडा है और अपने जीवन काल में मैंने खुद हैजा, पीलिया और प्लेग जैसे महामारियों के नाम सुने, लोगो को पीड़ित होते देखा और रोकथाम के हर प्रयास करते देखा क्युकी मेरा मानना है की किसी हद तक तो WHO और सरकारों के पास रोकथाम के तरीके थे और उनकी बातो में एक सत्यता थी ना की अभी की तरह कि, ऐसे भी हो सकता है, वैसे भी हो सकता है और हमें खुद नहीं पता की कैसे कैसे हो सकता है वाले बेतुके बयान।  आज विश्व की आर्थिक और मेडिकल तरक्किया नए आयाम पे है लेकिन कही न कही इच्छाशक्ति की कमी और समस्या को टालने का प्रयास इस बार पार नहीं पड़ने दे रहा है। आधुनिकीकरण के इस युग में जैसे जैसे ज्ञान और शिक्षा के नए माध्यम उपलब्ध है वैसे वैसे लगता है की जनमानस के बुद्धि का प्रयोग कम हो गया है और कई बार तो ऐसा भी लगता है की बुद्धि को तो कई लोगो ने आलमारी में रख दिया है ताकि कही घिस न जाए। एक कहावत है की "गेहू के साथ घून भी पीसता है" और अगर इसी उदहारण को सत्य माने तो वो जो बिना मास्क वाले और सारी एडवाइजरी को ताक पे रखने वाले घूम रहे है न, वही समाज के घून है और बाकी को आप गेहू मान लीजिये पर क्या इस बात से आपको भय नहीं लगता की आज गेहू के अनुपात में घुन काफी बढ़ गया है और कही ऐसा न हो कि एक दिन गेहू ही न बचे और सारा का सारा घून ही हो जाये तो क्या ऐसी स्थिति में मानव समाज चल पायेगा ? स्थिति अगर यही रही तो कुछ दिनों में बुद्धिजीवियों, सतसंगी और समाज के बढ़िया लोगो को सुरक्षित रखना पड़ जाएगा क्युकी इस धरती पर मानव संस्कृति विधाता की सबसे बड़ी और सबसे सुन्दर रचना है और मानव संस्कृति के उत्थान के लिए समाज संजोना ही होगा। 

मेरी तो कल्पना मात्र से दिल बैठ जाता है लेकिन सच्चाई यही है की आधुनिकता की आड़ में दुनिया भर के लोगो को और किसी की कोई परवाह नहीं रह गयी है और जो भी जी रहा है बस खुद के लिए जी रहा है। अमूमन कई बार देखने मिलता है कि सडको पर लोग इसलिए भी मार पीट के लिए उतारू हो जाते है की सामने वाला उसे ज्ञान न बांचे और और जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दे क्यूंकि बिन कायदे कानूनों और जंगलराज में जो फायदा है वो सभ्य समाज में नहीं है क्युकी सभ्य समाज में कुछ बंधन होते पर जंगल में कोई बंधन नहीं होता।

इस महामारी को न ख़तम करने में आज के आधुनिक समाज,प्राइवेट अस्पतालों, राज्य सरकारो, दवा कंपनियों और भय का व्यापार करने वालो का बहुत बड़ा हाथ है क्युकी अगर ये महामारी ख़तम हो गयी तो समाज के ऐसे कीड़ो का जीना मुश्किल हो जायेगा जो की दुसरो का खून पीकर जीते है और दुसरो की लाशो पर के चल के अपनी मंजिल तय करते है लेकिन समय के साथ इसमें ऐसे लोगो की भी उतनी ही जवाबदारी है जो की अपने जिद्दी पने और संकुचित मानसिकता के कारण दुसरो को लाचार बना रहे है। मेरा आग्रह है कि समय रहते ऐसे लोगो को पहचान कर उनसे उचित दुरी बना लीजिये वरना अपने ऐसे आराम और मुर्ख सोच के कारण ये समाज को पूरा खोखला बना देंगे और फिर हर शाख पर इन्ही उल्लुओं का निवास होगा। 

जब तक यह समस्या ख़तम न हो जाए तब तक सरकारी निर्देशों और नियमो का पालन करते रहे बस इसी आग्रह के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूँ। 

Friday, March 19, 2021

ये निगोड़ा फिर आ गया

खबर है की निगोडा फिर जाग गया है और फिर खाना पीना और नष्ट करना शुरू कर दिया है और अगर ये सच है तो भैया मामला खतरनाक है क्युकी ये फिर उनको ही सताएगा जो पहले से पीड़ित और प्रताड़ित है क्युकी मजबूत दीवारे कोई नहीं ढहाता और सब उजड़ी दीवारों से ही ईंटे चुन ले जाते है तो इस बार फिर वही लोग परेशांन होंगे जो पिछली बार पैदल अपने घर पहुंचे थे। आशा करता हु की आप समझ गए होंगे की किस निगोड़े की बात हो रही है क्युकी अगर बस इशारे इशारे में ही सरकार बदल जाती है तो ये नाम क्या चीज है जी। 


तकरीबन साल भर की कमरतोड़ मेहनत के बाद वैक्सीन नाम की संजीवनी जनता के बीच आयी थी और अब बस ऐसा लगने लगा था कि WFH का सुख ख़तम हो जायेगा और फिर ऑफिस में फॉर्मल कपड़ो में जिंदगी वापस लौट जाएगी पर बाकी सब ठीक हो जायेगा और फिर भारत उठ का दुगनी शक्ति के साथ चलेगा लेकिन इस देश में सरकारों की कुछ अलग ही इच्छा है। कोविड की आकंड़ो को आप देखे तो आपको समझ में आएगा की किस गति से इस देश ने रिकवर किया और अरब की आबादी वाला देश मात्र कुछ हजार के आकड़ो पर रुक गया पर न जाने ये रेटिंग एजेंसियो को क्या सूझी की भारत की प्रगति की उम्मीद विश्व में सबसे तेज का अनुमान लगा दिया और यकीं माने ये आकड़े आम आदमी को समझ आते की उसके पहले फिर एक बार आम के मौसम के पहले आम आदमी को बाँधने की तैयारी चालू हो गयी। यकींन मानिये इतना तेज तो सॉफ्टवेयर के पैच भी मार्किट में नहीं आते जितना तेज कोविड के वेरिएंट आ रहे है मानो कोरोना कहीं यज्ञ कर के अपनी शक्तियों को बढ़ाता जा रहा है और देश में कन्टेनमेंट जोन फिर बढ़ते जा रहे है जिनको की देख के लग रहा है कि आप देश में जिनको शिकायत नहीं आयी है उनको अलग क्वारंटाइन करना पड़ेगा ताकि इंसानियत का बीज बचा रहे। 


इस कोरोना में वैसे तो दुनिया निपट गयी लेकिन कुछ नहीं निपटा तो वो था अनाप-शनाप बयानबाजी करने वाले नेता और WHO का कोई सदस्य,असली दुनिया के नकली सितारे और लपरझंडिस लोग।  यहाँ हालत ये है की जनता घर से बाहर नहीं निकलती है और फिर भी पीड़ित हो जाती है और बड़े बड़े फिल्म स्टार, नेता, धाँधलीबाज और चोर उचक्के जो की दिन भर धड़ल्ले से लोगो और प्रशाषन की आँखों मे धूल डालते घूमते है उनको कुछ नहीं होता है। कभी कभी तो लगता है की ये लोग जरूर उस समय किसी न किसी अवतार में मंदराचल पर्वत मंथन के समय अमृत पान कर गए थे और अजर अमर का सार्टिफिकेट माथे पे चिपका आये थे। 


भारत में कोरोना कई प्रकार के रंग रूप में हाजिर है और कई बार तो लगता है की मनमाना काम करता है जैसे की अगर कही किसी बड़े फिल्म स्टार की शूटिंग या पार्टी चल रही है तो बढ़िया कपड़ो के अभाव में वह नहीं जाता और अगर किसी गरीब की शादी, मंगनी, मैयत या जन्मदिन का कार्यक्रम हो तो चालान की पुस्तक लेकर पहुंच जाता है और जम कर फाइन वसुलवाता है। ठीक इसी तरह अगर किसी राजनेता की चुनावी रैली हो तो न्यूट्रल होने के कारण नहीं जाता पर कही भी भक्ति भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम में संगीत प्रेमी होने के कारण पहुंच जाता है। कई बार तो ऐसे लगता है की प्राइवेट ऑटो, टैक्सी और बसों में सवार करना इसे बहुत पसंद है क्युकी वह २ से अधिक की परमिशन नहीं है पर सरकारी बसों में भीड़ से घबराता है। 


डर तो भैया हमें भी बहुत लगता है इसीलिए हम तो दूध भी लाने जाते है तो मास्क नहीं छोड़ते पर पडोसी अंकल को जरा भी डर नहीं लगता जो की दिन भर बिना मास्क के गलियां नापते चलते है और इस तरीके से तो मुझे कई बार ये भी लगता है की ये धर्म स्पेसिफिक भी है क्यूंकि उनको नहीं धरता पर हमको आँखे चमकाता है और अगर ये सच है तो यकीं मानिये इस मर्ज का उपाय बनाने में तो ये पीढ़ी खाप जाएगी क्यूंकि जब तक इस देश में जिम्मेदारी और जवाबदारी पैर नहीं जमायेगी तब तक कोरोना की जड़ें नहीं हिलेंगी और ये कोढ़ इस देश को कुरेद के कमजोर बना देगा। 


आखिरी शब्दों में बस यही कहूंगा कि सबको जब तक अपनी अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं आयेगई तब तक भैया मास्क न उतारियेगा। 

अच्छी व्यवस्थाएं आपने चाही ही कब थीं ?

नमस्कार पाठको , विषय से एकदम सट कर फिर पूछता हूँ की इस देश में अपने सुव्यवस्था, सुसाशन, बेहतरीन मेडिकल सेवाएं, सड़क, रेल, बिजली और न जाने क्य...