संकट है पर कट जाएगा, सम्पन्नता का सूरज फिर चकमकाएगा
धीरज धरने का समय है धीर धरो, और ना की ख़ामख़ा वीर बनो।
शत्रु बहुत बलवान है, धूर्त है छिपा हुआ है और हम उस शक्ति से अनजान है,
पर बहुत नहीं यह टिक पाएगा, औंधे मुँह यह गिर जाएगा बस कुछ दिन की दरकार है।
शत्रु यह अज्ञात है पाना इससे निजात है पर स्वयं ही रखना अपना ध्यान है
हर पग फूँक फूँक कर रखना होगा, अपनी रक्षा खुद करना होगा।
कुछ दिन बच्चो को फुसलाना होगा, घर में ही खेल-कूद कराना होगा,
माना हमको कुछ दिक्कत होगी पर ऐसे ही ठेंगा दिखलाना होगा।
यह संकट भी कुछ सीखा रहा है, समाज को आईना दिखला रहा है,
फिर भी जो सीख न पायेगा, मझधार मे ही रह जाएगा।
सब रिश्ते नाते धरे रह जायेंगे, गर हम खुद को न समझायेंगे,
कोई मिलने तक न आयेगा गर इसमें कोई फ़स जाएगा।
है बात पते की कहता हूँ, एकांत में ही कुछ दिन से रहता हूँ
गर आप भी फिर कभी मिलना चाहें, फ़िलहाल घर में ही टिक जाएं।
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