व्यक्तित्व से कठोर पर हृदय से मर्म होता है पिता
तुम क्या जानो क्या क्या न करता है तुम्हारा पिता।
एक रोटी तुम्हे कम न हो इसलिए तपता है पिता,
तुम्हारे माथे से पसीना भी न टपके इसलिए न थकता है पिता।
रोजमर्रा की कशमकश की थकान छिपाता है पिता,
सो जाये बच्चे तो भी उनके सर सहलाता है पिता।
अमूमन दो पीढ़ियों के बीच जातों मे पिस जाता है पिता,
और फिर कभी अम्मा तो कभी मुन्ना को फुसलाता है पिता।
पुरुष है मतलब ऐसा नहीं की कभी भावुक ही नहीं होता,
बस अपने भीनी आँखों को हर किसी से छुपाता है पिता।
दो शब्दों का नाम है पर खुद में ही संसार समाता है पिता।
मन के विचारो को कागज़ को उतारने का पहला प्रयास किया है और सराहनीय लगे तो अवश्य साझा करे ताकि ऐसे प्रयासों को शक्ति मिले।
मन के विचारो को कागज़ को उतारने का पहला प्रयास किया है और सराहनीय लगे तो अवश्य साझा करे ताकि ऐसे प्रयासों को शक्ति मिले।
Goodone..
ReplyDeleteThanks for the valuable feedback
DeleteGood one...
ReplyDeleteVery nice
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