Wednesday, July 8, 2020

टालना भी एक कला है।

आज का लेख उन सब दिग्गज बन्धु बांधवों को समर्पित हो आज का कल, काल का परसो और परसो वाले तरसो करने में माहिर है। 

इस लेख के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष को चिन्हित नहीं करना चाहता पर हां सब के भीतर के कुंभकर्ण को दर्शाना जरूर चाहता हूं क्युकी काम टालू इंसान भी कभी ना कभी तो काम करता ही है भले सुविधा या सिस्टम ख़तम हो जाने के बाद ही क्यू ना करे। काम टालने वाला काम तब शुरू करता है जब तक मामला हाथ से बाहर ना सरकता दिखे और हासिल करने की कोई उम्मीद ना बचे क्युकी आलसी के परम पूज्य कुंभकर्ण भी तो कुछ ना कुछ तो करता ही था वरना रावण क्यों उस बला को ढोल नगाड़े बजवा कर उठवाता।

असल जीवन में काम टालू लोगो को कुछ हद्द तक कुंभकर्ण का ही शेष मानते है और चाहे घर वाले हो या मित्रमंडली उनको तब तक नहीं कष्ट देते जब तक कोई आखिरी रास्ता बच ना गया हो। ऐसे लोगो की पहली समस्या तो ये होती है कि ये बहुत ही ज्यादा व्यस्त होते है और हो भी क्यों ना ढेरों सारे बकाया काम जो पीठ पर छोड़ रखे होते है और कईयों मामले तो ६ महीने तक पुराने होते है पर भाई साहब सब काम अगर सही सही और बिना किंतु परन्तु के होने लग जाए तो बेचारे लेखक अपने कागज पर कलम से क्या राजा रानी चोर पुलिस खेलेंगे। 
भाई इनसे ही तो प्रेरणा मिलती है और समाज का संतुलन बराबर बना हुआ है वरना अगर ये लोग दूसरे के लिए कुछ शिकायत का मौका ही न छोड़े तो समाज का संतुलन खराब ना हो जाए और काना फूसी का मौका ना ख़तम हो जाए।

एक काम टालू आदमी हर हफ्ते के शुरुवात में एक टास्क खुद के लिए तय करता है और जैसे जैसे सप्ताह बीतता जाता है वैसे वैसे भाई बंधु, मित्र गण, परिजन और धरम पत्नी को डिटेल टाइम के साथ समझाता है पर अब इसे किस्मत का खेल ही कहेंगे कि ऐन मौके पर कुछ ना कुछ छोटा सा विघ्न आ जाता है और पूरे समाज के सामने बनाई हुई योजना धरी की धरी रह जाती है। इस बात मे कोई दो राय नहीं कि कभी कभार ऐसी रुकावटें आती है जहां पर कार्यक्रम रद्द करना पड़े पर मेरा मानना है कि अलग दिल में लगन हों कुछ पाने की तो बंदा कुछ भी कर गुजरता है और सारे जतन करता है ताकि प्रोग्राम फेल ना ही लेकिन ये सारी ज्ञान की बातें काम टालू लोगो पर नहीं जचती क्युकी उनके अलग ही नियम कानून है और एक बार जो कमिटमेंट कर दी वो वो पूरा हो ऐसा जरूरी नहीं समझा जाता है। संस्कृत में एक श्लोक है,

अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् | 
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् || 

अर्थात्: आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

हालाकि जब शास्त्रों में इसे लिखा गया होगा उस समय यह अलग वाली प्रजाति जो न तो पूरी तरह कामचोर है और न ही पूरी तरह फुर्तीली आस्तित्व में नहीं थी और इसी लिए ये श्लोक भी कुछ सटीक नहीं चिपकता इस वर्ग पर। दरअसल यह एक अलग प्रजाति है जो भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की ही भांति कई शर्तो को सटीक तरीके से काट कर निकलती है। आलसी और काम टालू में एक बड़ा अंतर है, आलसी आदमी कुछ नहीं करता लेकिन काम टालू करता है पर अपने हिसाब से और भले ही उसका हिसाब किताब लंबा चले पर करता जरूर है।

जैसा कि पहले ही बताने का प्रयास किया की ये किसी को केन्द्रित कर के नहीं लिखा है पर हर किसी के अंदर छिपे उस किरदार को उंगली दिखाने की कोशिश की है जो कि टाल मटोल कर और खीच घसीट कर जिम्मेदारी निपटाता है क्युकी न तो वो बेचारा कामचोर है न तो आलसी, बस वो तो खाली एक काम टालू है। अपने स्वयं के अनुभव से बस २ ही बिन्दुओं की तरफ आकर्षित करूंगा जो कि अमूमन अधिकतर लोगो की समस्या बनी है।

१) व्यायाम: उम्मीद है कि एक मुस्कुराहट आ गई होगी क्युकी ये हर दूसरे इंसान का ख्वाब है।
२) पढ़ना: शिक्षा जीवन का आधार है और जिस प्रकार प्रकाश बिना अंधकार है वैसे ही जीवन में शिक्षा बिना अंधकार है। हर किसी को अपनी रुचि और काम के अनुसार रोज तकरीबन आधे से एक घंटा पढ़ना चाहिए पर फिर भी ये बहुत मुश्किल है।

अब आपकी बारी है कि अपनी लंबे समय से टाली हुई समास्या के बारे में ध्यान लगाए और लिख कर बताए या अपने आप से बात करे क्युकी आदमी खुद से झूट नहीं बोल सकता। टालना खुद एक समस्या है सो इस समस्या को टाल के रबड़ ना बनाए और जड़ से ख़तम करने की पहल करें क्युकी जब हम कुछ करते है तो जरुरते पैदा होती है और आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है इसीलिए खुद को भले काम में व्यस्त रखे और इस लेख के पात्र बनने से बचें।


अपने विचार जरूर साझा करें न कि काम टालू की तरह इस प्रयास को भी टाल जाए ।

2 comments:

  1. Replies
    1. बहुत दिनों से टाल रहा था मै भी

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